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Thursday, June 13, 2013

ख़ानाबदोश जिंदगी

ख़ानाबदोश सी जिंदगी मेरी यूँ ही चलती रहती है,
रात में रख के दिल सिरहाने पे,
सुबह उठती है और फिर चलने लगती है,

कभी किसी के हाथ में, कभी किसी के साथ में,
कभी मेरे लफ़्ज़ों में, कभी तेरे मायनो में,
रुकती है, तहेरती है, दो घूँट पानी पीके,
मुँह पे छिटें मार के, फिर से चलने लगती है,

कोशिश करती है कभी कुछ पकड़ने की,
एक दोस्त, एक याद, थोड़ी खुशी, कुछ लम्हे,
रखती है अपने झोले में, पैबंदी झोले से हार मान के,
तो थोड़ा झुंझला के, झोला खाली करके,
ख़ानाबदोश सी जिंदगी मेरी यूँ ही चलती रहती है

घर का कोई पता नहीं, सड़कों पे मारी मारी सी,
एक घरोंदा ढूँढती, कभी इधर, कभी उधर,
खाली झोला लिए हुए,
ख़ानाबदोश सी जिंदगी मेरी यूँ ही चलती रहती है

सड़क पे चलने वाले, पलट के देखा करतें है,
यह भी कभी देख के उन्हें मुस्कुरा देती है,
इन भरी सड़कों को देख के, थोड़ा घबरा के
यह भी इन ज़िंदगियों की भीड़ में शामिल हो जाती है,
ख़ानाबदोश सी जिंदगी मेरी यूँ ही चलती रहती है

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